एक व्यक्ति के स्वभाव से पता चल जाता है, कि सामने बाले की आदतें कैसी हैं,वह अपने दिन चर्या की शुरुआत कैसे करता है और वह अपना जीवन कैसे जी रहा होता है।
अगर आदतें अच्छी हों,तो हमे कर तरह के फायदे होते रहते हैं,जिसका हम अनुमान भी नही लगा सकते,जबकि आदतें बुरी हो तो उसका पता हर किसी के पास होता है, अच्छी आदतों को भले कोई ध्यान न दे ,पर बुरी आदतें किसी से छुपी ही नही राह सकतीं।ठीक वैसे ही जैसे आग लगने पे धुंए का उड़ना।
एक हमारे घास मित्र है,मोनू जी ,उम्र में मुझसे काफी बड़े है, पेशे से नाई हैं। मेरा घर उनके दुकान से काफी दूर है,जबकि नजदीक पे भी कई दुकानें हैं।फिर भी मैं मोनू जी के पास ही बाल बनबाने जाता हूँ,ऐसा नही है कि वो कम रेट पे मेरा काम करते हैं, या मेरे बहोत घास मित्र हैं।फिर भी मैं उनके तरफ खिंचा चला जाता हूँ।क्योंकि मोनू जी का जो स्वभाव है, उनके लोगो के प्रति बात करने की जो शैली है, वो बहुत अच्छी है, वो सबसे बड़े इज्जत और सम्मान के साथ व्यवहार करते हैं।और ऐसा भी नही है कि मोनू जी केवल बड़े और अमीर लोगो से ही इज्जत देते हैं, वो तो राह चल रहे राही से भी राधे राधे कर लेते हैं और उनकी इन्हीं अच्छे व्यवहार के कारण,उनके दुकान में लोगो की भीड़ लगी रहती है।
पहले मुझे लगता था कि ये बंदा धंदा बढ़ाने के लिए लोगो से जी हुजूरी करता है, या फिर दिखाबा करता है, जिससे ज्यादा लोग उसके संपर्क में आयें।
एक और महाजन हैं, जो मेरे पहचान के ही हैं, उनका व्यवसाय सब्जी भाजी का है, दिखने सुनने मे बढ़िया हैं।लोगो के संपर्क में भी रहते हैं, पर उनका धंदा ज्यादा चलता नही है।समस्या ये है कि वो हर बात पे गलत शब्दों का उपयोग करते हैं और गाली गलौच भी देते रहते हैं। ऐसा भी नही है कि उस व्यक्ति पे कोई कमी है या वह बहोत बुरा है। आदमी ठीक है, ईमानदार है, लोगो की जरूरत पड़ने पे मदत भी करता है।फिर भी उसके अच्छे स्वभाव न होने के काऱण ,उसके पास कम ग्राहक है।
पहले मित्र थे मोनू जी जिनका स्वभाव अच्छा होने के चलते लोग उनके तरफ खिंचे चले जाते हैं और दूसरे बंदे है, सब्जी भाजी बाले,जिनका बर्ताव अच्छा न होने के चलते,उनके लिस्ट में ग्राहक की बढ़ोतरी कम है, दोनो में स्वभाव का फर्क है। और स्वभाव आता कहाँ से है,हमारी आदतों से,जिससे हम बेखबर होते हैं, और अपना ही नुकशान कर बैठते हैं।
मोनू जी जिसे मैं दिखाबा कहता था,दरअसल वो उनकी आदत है, लोगो से सलामी करना,आदर सत्कार करना,बड़ो की इज्जत करना, मीठी वाणी का उपयोग करना। शुरू शुरू में भले उन्हें थोड़ा अजीब लगता रहा होगा,पर जब वह प्रतिदिन मीठे और प्यार भरे शब्दों का उपयोग करने लगे,जिससे उनकी अच्छी आदत बन गई।फिर मोनू जी के लिए कौन छोटा और कौन बड़ा। वह बड़े आसानी से लोगो से संपर्क में बनते गए।
सब्जी बाले भैया,जो हमेसा से ऐसे माहौल पे पले बड़े,जहां अभद्र शब्दो का ज्यादा चलन रहा।भले मुह से निकले शव्दों का मतलब पे हमारा ध्यान न जाये,या हम समझ न पाएं की जो हम बोल रहे हैं या कर रहे हैं, सामने बाले पे उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है या सुनने में कैसा लग रहा है। बुरी आदतें हमारा नुकशान ही नही,बल्कि लोगो के प्रति एक ऐसी छवी बना देतीं हैं, जिससे हर कोई कटता रहता है और हमें कई दफा शर्मिंदा ,लज्जित भी होना पड़ता है।
अगर हम ठीक से चलते हैं, बैठते हैं, बाते करते हैं,या व्यवहार करते हैं ,वही चल कर आंगें आदत पे बदल जाती है और जब एक बार आदत बन जाती है, तो फिर उसे बदलना या छोंड़ना आसान नही होता है। अब निर्भर ये करता है कि हम कौन सी आदतें बनाते हैं, अच्छी की बुरी।
अगर आदतें अच्छी हों,तो हमे कर तरह के फायदे होते रहते हैं,जिसका हम अनुमान भी नही लगा सकते,जबकि आदतें बुरी हो तो उसका पता हर किसी के पास होता है, अच्छी आदतों को भले कोई ध्यान न दे ,पर बुरी आदतें किसी से छुपी ही नही राह सकतीं।ठीक वैसे ही जैसे आग लगने पे धुंए का उड़ना।
एक हमारे घास मित्र है,मोनू जी ,उम्र में मुझसे काफी बड़े है, पेशे से नाई हैं। मेरा घर उनके दुकान से काफी दूर है,जबकि नजदीक पे भी कई दुकानें हैं।फिर भी मैं मोनू जी के पास ही बाल बनबाने जाता हूँ,ऐसा नही है कि वो कम रेट पे मेरा काम करते हैं, या मेरे बहोत घास मित्र हैं।फिर भी मैं उनके तरफ खिंचा चला जाता हूँ।क्योंकि मोनू जी का जो स्वभाव है, उनके लोगो के प्रति बात करने की जो शैली है, वो बहुत अच्छी है, वो सबसे बड़े इज्जत और सम्मान के साथ व्यवहार करते हैं।और ऐसा भी नही है कि मोनू जी केवल बड़े और अमीर लोगो से ही इज्जत देते हैं, वो तो राह चल रहे राही से भी राधे राधे कर लेते हैं और उनकी इन्हीं अच्छे व्यवहार के कारण,उनके दुकान में लोगो की भीड़ लगी रहती है।
पहले मुझे लगता था कि ये बंदा धंदा बढ़ाने के लिए लोगो से जी हुजूरी करता है, या फिर दिखाबा करता है, जिससे ज्यादा लोग उसके संपर्क में आयें।
एक और महाजन हैं, जो मेरे पहचान के ही हैं, उनका व्यवसाय सब्जी भाजी का है, दिखने सुनने मे बढ़िया हैं।लोगो के संपर्क में भी रहते हैं, पर उनका धंदा ज्यादा चलता नही है।समस्या ये है कि वो हर बात पे गलत शब्दों का उपयोग करते हैं और गाली गलौच भी देते रहते हैं। ऐसा भी नही है कि उस व्यक्ति पे कोई कमी है या वह बहोत बुरा है। आदमी ठीक है, ईमानदार है, लोगो की जरूरत पड़ने पे मदत भी करता है।फिर भी उसके अच्छे स्वभाव न होने के काऱण ,उसके पास कम ग्राहक है।
पहले मित्र थे मोनू जी जिनका स्वभाव अच्छा होने के चलते लोग उनके तरफ खिंचे चले जाते हैं और दूसरे बंदे है, सब्जी भाजी बाले,जिनका बर्ताव अच्छा न होने के चलते,उनके लिस्ट में ग्राहक की बढ़ोतरी कम है, दोनो में स्वभाव का फर्क है। और स्वभाव आता कहाँ से है,हमारी आदतों से,जिससे हम बेखबर होते हैं, और अपना ही नुकशान कर बैठते हैं।
मोनू जी जिसे मैं दिखाबा कहता था,दरअसल वो उनकी आदत है, लोगो से सलामी करना,आदर सत्कार करना,बड़ो की इज्जत करना, मीठी वाणी का उपयोग करना। शुरू शुरू में भले उन्हें थोड़ा अजीब लगता रहा होगा,पर जब वह प्रतिदिन मीठे और प्यार भरे शब्दों का उपयोग करने लगे,जिससे उनकी अच्छी आदत बन गई।फिर मोनू जी के लिए कौन छोटा और कौन बड़ा। वह बड़े आसानी से लोगो से संपर्क में बनते गए।
सब्जी बाले भैया,जो हमेसा से ऐसे माहौल पे पले बड़े,जहां अभद्र शब्दो का ज्यादा चलन रहा।भले मुह से निकले शव्दों का मतलब पे हमारा ध्यान न जाये,या हम समझ न पाएं की जो हम बोल रहे हैं या कर रहे हैं, सामने बाले पे उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है या सुनने में कैसा लग रहा है। बुरी आदतें हमारा नुकशान ही नही,बल्कि लोगो के प्रति एक ऐसी छवी बना देतीं हैं, जिससे हर कोई कटता रहता है और हमें कई दफा शर्मिंदा ,लज्जित भी होना पड़ता है।
अगर हम ठीक से चलते हैं, बैठते हैं, बाते करते हैं,या व्यवहार करते हैं ,वही चल कर आंगें आदत पे बदल जाती है और जब एक बार आदत बन जाती है, तो फिर उसे बदलना या छोंड़ना आसान नही होता है। अब निर्भर ये करता है कि हम कौन सी आदतें बनाते हैं, अच्छी की बुरी।